श्री गूंगी माई चालीसा

गौरी सुत का स्मरण कर, धरु सरस्वती का ध्यान।

              सार रुप में कुल देवी की, महिमा करुं बखान ।।

              नित्य प्रति जो सच्चे मन से पाठ करे देई माई का।

              दया कर उस भक्त पर सिध्द करो उसकी गोरिसा ।।

              ममता मयी करुणां की सागर, भक्ति प्रेम के रस की गागर।

              चारों और प्रताप तुम्हारा, तुम से सदा काल भी हारा।।

              कुल की देवी, कुल की रक्षिणी, कुल कष्टों की तु ही भक्षिणी ।

              तीन लोक तेरा डंका बाजे, देवी देव गुण तेरा गावे।।

              एक रुप सेालह अवतार, गुंगी माई जग पालन हार।

              यथा रुप व गुण की दात्रिक, भक्त पूजें तुझे सोडष मात्रिक।।

              गौरी रुप में दुर्गा माता, बनी गणगौर सुहाग की दाता।

              पदमा रुप से लक्ष्मी पूजन, सुख धन वैभव पावे निर्धन ।।

              शची इन्द्र भार्या मन शुद्धि, मेघा पूजन से मिलती बुध्दि।

              सावित्री आधार सृष्टि का, ब्रम्हा भार्या की दिव्य दृष्टि का।।

              जय विजया से जीत तुम्हारी, देव सेना रक्षक है प्यारी।

              तुष्टि पुष्टि से मिलती दया है, सुन्दर स्वास्थ्य प्रदान किया है।।

              स्वाधा स्वाहा है रुप अग्नि का, धृति रुप है भक्ति लगन का।

              प्रथम पूजन कर तुम्हे मनाते, पूजन के सब द्वार खुलाते ।।

              जय देई माई गुंगी अम्मा, मंगल कुल की देवी जगदम्बा।

              सब के मन में बसी हुई है, ग्राम देव संग रची हुई है।।

              कुठानियां में दरबार है साजे, नित नोबत तेरे द्वारे बाजे।।

              स्वर्ग से बढकर धाम है तेरा, श्री गुंगी माता मां नाम है तेरा।

              घर घर तेरा रुप विराजे, मां बहनों की बेटी साजे।।

              सातों बहनों को साथ मनाते, नित उठ गुण तेरा मां गाते।

              जिस पर कृपा हो तेरी गुंगी माई, उसके मान की ध्वजा फहराई।।

              कुल की देवी कहलाती मां, कल्याण मार्ग को बतलाती मां।

              भक्तों की कुल देवी कहाई, सब जग मां की देवे दुहाई।।

              सर्व जाति सब मानुष भजते, जात जङुला जागरण करते।

              तीन लोक देवों की शक्ति, सब करते मां तेरी भक्ति।।

              जग का कण कण तुम चमकाती, अन्तर मन में ज्योत जगाती।

              युग-युग में नए रुप धरे हैं, रुप धर के कल्याण करे है।।

              श्री गुंगी मैया के विशाल मंड में, मंड के अन्दर द्वार खण्ड में।

              शक्ति रुप की कई प्रतिमायें, देखों कैसी शोभा पायें।।

              कुलदेवी पितरों की आन, अखण्ड ज्योति जहां रखे मान।

              विराजे संग तेरे देव तमाम, तभी तो हो जल्दी पूरण काम।।

              सब रुपों के सुन्दर फूल, मिल के बनाते शक्ति त्रिशूल

              चारों दिशा में तेज तुम्हारा, सुर्य चन्द्र किरण की धारा ।।

              शक्ति मां का हृदय है तुमने पाया, भेद तेरा कोई समझ न पाया।

              सात समुन्दर की बनी स्याही, वृक्षों की मां कलम बनाई।।

              है कुलदेवी जगत तारिणी, महिमा तेरी जाए न वारिणी।

              कारज भक्तों के मां सारो, संकट को मां तुम ही टारो।।

              निस दिन तुमको याद करुं मां, भूल चूक सब क्षमा करो मां।

                           दोहा:-

विध्न हरे मंगल करे, कष्ट हरे करे सब ठाठ।

कुल देवी चालीसा का, नित्य करे जो पाठ।

दया करो जीवन को संवारो, संकट हरो कुल देवी मां।

तीन लोक की सर्व शक्ति मां, थारा टाबर म्हे भी मां।