श्री देई माई (गुंगीमाई) का इतिहास

श्री देई माई ( गुंगी माई ) माता को मुख्य रुप हिन्दु देवी माता सती (जगदम्बा मातेश्वरी) का ही रुप माना जाता है। पुराणों के अनुसार जब भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र का इस्तेमाल कर माता सती की शव के टुकङे किये। जहां जहां माता सती के शरीर के अंग गिरे, वो स्थान शक्तिपीठ बन गए। शक्तिपीठों के स्थानों और संख्या को लेकर ग्रन्थों में अलग अलग बातें कही गई है। इन्ही शक्ति पीठों में पहले स्थान पर हींगलाज शक्तिपीठ है, जो पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रान्त में है। बताया जाता है कि यहां सती माता का ब्रहम्रन्धरा (मस्तक) गिरा था। स्थानीय मुस्लिम भी हिंगलाज माता पर आस्था रखते हैं और मन्दिर को सुरक्षा प्रदान करते हैं। मुस्लिम हिंगलाज माता मन्दिर को ‘‘ नानी का मन्दिर ‘‘ कहते हैं तथा तीर्थ यात्रा को ‘‘ नानी का हज ‘‘ कहतें हैं।

         लोक कथाओं के अनुसार हिंगलाज माता को चारणों की कुलदेवी माना जाता है। यहां की दंत कथाओं के अनुरुप सातों महाद्वीपों की सातों शक्तियां रात्री में विचरण करती हैं व सुबह सब भगवती हींगलाज में समा जाती हैं। कहा जाता है कि बहुत समय पहले एक मामङिया चारण नाम का एक चारण था, जिनके कोई बेटा बेटी अर्थात कोई संतान नहीं थी, उसनें संतान प्राप्ति के लिए सात बार हिंगलाज माता पैदल यात्रा की। एक रात उस चारण को सपनें में आकर माता नें पूछा कि तुम्हें बेटा चाहिए या बेटी, तो चारण नें कहा कि आप ही मेरे घर जन्म ले लो। हिंगलाज माता की कृपा से उस चारण के घर सात पुत्रियों व एक पुत्र नें जन्म लिया। जिनके बचपन के नाम आवङ, आषी, सेसी, गेहली, होल, रुप और लांग थे। इन देवीयों ने इस क्षेत्र में बहुत से चमत्कार दिखाए और लोगों का कल्याण किया । कालान्तर में ये देवीयां सातों बहनों के रुप में पूजी जानें लगी और अलग अलग जगह उनके मन्दिर बनवायें गये। जैसलमेेर क्षेत्र में सातों बहनों व उनके मन्दिरों के बारें में यह कथा प्रचलित है कि भादरिया नामक राजपूत का पूरा परिवार आवङ माता का भक्त था। उनमें से भादरिया की पुत्री, जिसका नाम बुली बाई था, वह मैया की अनन्य भक्त थी। बुली बाई की भक्ति की चर्चाएं चहुं ओर फैली हुई थी। इन चर्चाओं को सून उस क्षेत्र के राजपूत भाटी राजा तनुराव जी महाराज अपनें परीवार सहीत बुली बाई के यहां पधारे। बुली बाई से महारानी जी नें साक्षात रुप में मैया के दर्शन करवानें का निवेदन किया। बुली बाई ने मैया का ध्यान लगाया। कहते हैं कि भक्तों के वश में भगवान होते हैं। मैया बुली बाई के आवाहन पर उसी समय सातों बहनों व भाई के साथ प्रकट हुई। तब राजा नें मैया से निवेदन किया कि मैया आप किस जगह विराजमान रहती हो, मैं वहीं मन्दिर बनवा दुंगा, तब मैया जी नें कहा राजन हम हर जगह विराजमान हैं, पर आप अमुक जगह मन्दिर बनवा दिजिए। इतना कहकर मैया वहां से रावण हो गई। उसी जगह पर भक्त भादरिये के नाम से भादरिया राय मन्दिर महाराज की प्रेरणा सें बनवा दिया गया। इस प्रकार बुली बाई के आवहान पर प्रकट होनें व भादरिया के परिवार पर कृपा बनानें से मातेश्वरी भाटी राजपुतों की कुलदेवी कही जानें लगी। इस क्षेत्र में मैया की छः ओर बहिनों के मन्दिर हैं, इनमें से तनोट राय मन्दिर, काले डुंगराय मन्दिर, नभ डुंगराय मन्दिर, देगराय मन्दिर, श्री घंटियाली राय, श्री पनोधरी राय आदि।

       एक बार गुरु गोरख नाथ माता हिंगलाज होकर आ रहे थे तब सातों बहनों के चमत्कारों व उनके द्वारा किये गये लोक कल्याण की गाथा सुन योगीराज नें अपनी योग माया से पता लगाया कि यह सातों बहनें माता हिंगलाज का रुप हैं। तब योगी गुरु गोरखनाथ नें सातों बहनों को अपनी योग षक्ति से प्रकट कर उन्हें प्रदेष के अन्य क्षेत्रों में भी विचरण कर लोक कल्याण करनें की बात कही व अपनी योग माया से उन्हें विचरण करनें कि दिव्य षक्ति (पालना) भेंट स्वरुप दिया। कहा जाता है कि गुरु गोरख नाथ जी महाराज नें ही सातों बहनों में बङी बहन को महामाई श्री देई माई व उनमें से एक बहन जो बोलती नहीं थी पर वो सभी गंुगों, अंधो व अपंगों को ठीक करती थी, को गुंगी माई नाम देकर दो बहनों व उनके एक भाई (छेतरपाल जी महाराज) को कुठानियां धाम में रहकर ही लोक कल्याण करनें के लिए कहा था ओर यहीं आस पास ही षेष 5 बहिनों को विराजमान  किया जो इस प्रकार से मानी जाती हैं:-

           श्री महराणा वाली माई, माखर वाली माई, पाटन वाली माई, ईन्द्रपुरा वाली माई व सामोद वाली माई आदि। इनमें सभी माता रानी अलग अलग क्षेत्रों में अलग अलग कुलों की देवीयां बताई जाती हैं।

          कई दंत कथाओं में यह भी कहा जाता है कि श्री देई माई वगैरह सात बहनें र्स्वग लोक से आई सात बहनें ( परियां ) थी। जिन्हे र्स्वग लोक में मिले षाप से छुटकारा पानें के लिए पृथ्वी लोक (मृत्यु लोक) में रहकर निष्चित समय के लिए लोक कल्याण करना था, जिसके चलते सातों परियों नें धरती पर आकर कई चमत्कार किये व लोक कल्याण किया। सातों बहनों नें छेतरपाल जी महाराज को अपना भाई माना।

         जब यह बात गुरु गोरख नाथ जी को पता चली तो उन्होनें लोक कल्याण के लिए सातों बहनों को वापिस ईन्द्र लोक ना जाकर यही (पृथ्वी लोक) पर रहकर जन हित के कार्य करनें की बात कहीं, जिस पर सातों बहनों द्वारा ऐसा होना असम्भव बताया। बताया जाता है कि तब गुरु गोरख नाथ जी नें अपनी योग षक्ति से बांधकर सातों परीयों को धरती पर अलग अलग जगह विराजमान कर दिया। इनमें सबसे बङी बहन महामाई देई माई व गुंगी माई तथा भाई खेतरपाल को कुठानियां धाम में विराजमान किया। षेष बहनों को उपरोक्तानुसार अलग अलग विराजमान किया। तब से सातों बहनें धरती पर ही रह कर लोक कल्याण कर रहीं है और पालनें में बैठकर एक जगह से दुसरी जगह विचरण करती रहती हैं।

        इन सब से अलग श्रधालुओं द्वारा यह भी माना जाता है कि श्री देई माई महामाई है, अर्थात सम्पुर्ण जगत की जन्म दात्री है। सभी जीवों की मां जगदम्बें भवानी है। वो ही दुर्गा, वो ही पार्वती हैं। जब जब धरती पर धर्म की हानी होती है मां जगदम्बें किसी ना किसी रुप में धरती पर अवतार लेती हैं और धरती पर व्याप्त बुराईयों का नाष करती है। श्री देई माई के भक्त भी श्री देई माई का धरती पर अवतार लेना बुराईयों का नाष करनें को लेकर ही मानतें है। मान्यता है कि जब भैरव देव व उसके अनुयायीयों का आम जनता पर अत्याचार बढनें लगा तो उनका नाष करनें के लिए माता रानी बालिका रुप में आई थी, ओर अपनें एक भक्त से कहकर विषाल भण्डारे का आयोजन करवाया। भण्डारे का प्रसाद लेनें के लिए भैरव नाथ को भी बुलावा भिजवाया गया। भैरव नाथ जब भोजन कर रहा था तब उसनें मांस व मदिरा की मांग की। जिस पर माता व भैरव नाथ का आमना सामना हुआ। बताया जाता है कि माता ने 9 मास तक पहाङों की गुफाओं में रहकर सिध्दियां हासिल की। इस दौरान माता के कथित भाई छेतरपाल महाराज नें भैरव नाथ को गुफाओं में घुसनें नहीं दिया। इस 9 मास के समय में माता मुक रहकर ही इधर उधर विचरण करती थी और अपनें भक्तों के दुख दूर करती थी। माता के इसी मुक रुप को भक्तों द्वारा गंुगी माता का नाम दिया गया। 9 मास बाद सिध्दियां हासिल कर माता ने भैरव को ललकारा और उसका सिर धङ से अलग किया। कहा जाता है कि बाद में भैरव के सिर नें माता से माफी मांगी जिस पर माता नें उसे अपनें बाद में पूजा जानें का आर्षिवाद दिया।

       श्री देई माई, श्री गुंगी माई महामाईयों के उपरोक्त इतिहास का षिलालेखों, दन्तकथाओं, गाथाओं, भक्तों के जुबानी बताये जानें के अलावा कोई ठोस साक्ष्य नहीं है। पुराणों, षास्त्रों, या वेदों में भी इस तरह के काफी साक्ष्य मौजुद हैं जो यह दर्षातें हैं कि देवी जगदम्बा ही विभिन्न रुपों में प्रकट होकर भक्तों के कष्ट हरती हैं और वही जगत की जन्मदात्री देवी हैं।