श्री देई माई जी की पूजा करने के प्रयोजन व उद्देश्य

श्री देई माई जी (गुंगी माई जी) को सबकुछ देनें वाली माता माना जाता है इसलिए माता को देई माई माता कहा जाता है। इसे श्रधालु एक प्रकार से प्रकर्ति (सृष्टि) रुपी माता की तरह मानते हैं। जो सभी जीवों के अंगों का निर्माण करने वाली होती है, गर्भ के अन्दर से लेकर बाहर आनें के बाद बङे होनें तक। इसीलिए यहां आनें वाले श्रधालु मैया से हर प्रकार की मन्नत मागतें है तथा यहां पर किसी जाति या धर्म विशेष से जुङे लोग ही नहीं बल्कि हर जाति व हर धर्म के श्रधालुओं को यहां देखा जा सकता है। इस प्रकार का यह विश्व का अकेला मन्दिर है जहां श्रधालु मौन रहकर दर्शन करते व मन्नत मांगते है।

       यहां देश के हर कोने से श्रधालु आते हैं परन्तु आज तक मन्दिर में आते समय या वापिस अपने गन्तव्य को जाते समय किसी के भी दुर्घटनाग्रस्त होने का कोई मामला सामने नहीं आया है। भाद्रपद माह के मेले  में औरतों के नंगे पैर होने व बरसात के चलते कितनें ही विशेैले जीव जन्तु होने पर भी कभी किसी को काटे हुए नहीं देखा गया है। वैसे तो मन्दिर पर आने वाले हर श्रधालु की अपनी अलग मन्नत होती है पर कुछ विशेष मन्नतें जिनकी पुर्ति के लिए ज्यादातर श्रधालुं आते है, वो इस प्रकार हैं:-

1.     चलनें बोलनें व देखने के लिए :-

                          हर माता यह चाहती है कि उसके पैदा होने वाली संतान सुन्दर व निरोग हो और वो जल्द ही चलनें लग जाये व जल्द ही साफ साफ बोलने लग जाये। इसीलिए ज्यादातर माताएं संतान पैदा होते ही सबसे पहले उसे इस मन्दिर में लेकर आती हैं व मैया को भोग लगाती है ताकि उसकी संतान निरोग रहे, ठीक से चले व ठीक से बोले तथा ठीक से देखे। उसके बाद भी अगर उनकी संतान को कोई रोग हो जाता है या वो ठीक से चल नहीं पाता या बोल नहीं पाता या देख नहीं पाता तो वो अपनी संतान को दुबारा से मैया जी के दरबार में यह मानकर लेकर आती है कि हमसे कोई भूल हुई है जिससे पहले वाली धोक को मैया नें मान्य नहीं किया। दुसरी बार धोक लगानें पर उनकी मन्नत पुर्ण हो जाती है। अगर वहीं श्रधालु उसके बाद मांस मदिरा का सेवन करते हैं या अपने घर इन दुषित चीजों का प्रवेश करातें है तो यह मान्यता है कि मैया उनकी मन्नत कभी पूरी नहीं करती बल्कि कई बार दोष भी कर देती है। ऐसी स्थिती वाले भक्त मैया की सात बार धोक भी लगाते हैं।

2.     शादी व रोजगार के लिए:-

                          मैया जी के किसी प्रकार के दोष के कारण कुछ लङके, लङकियों की शादी समय पर नहीं हो पाती और ना ही पढ लिख लेने के बाद भी कोई रोजगार मिल पाता है तो ऐसे श्रधालु भी यहां काफी संख्या में आते हैं। उनके मन्दिर आकर मन्नत मांगने के बाद जब उनका रिश्ता हो जाता है और जब वो शादी करनें जा रहें होते है तो मैया जी के दरबार आते हैं। इसी वजह से मन्दिर में काफी संख्या में मैया जी के नाम के शादी कार्ड ईकट्ठे हो जातें हैं। इससे श्रधालुओं का मानना है कि मैया ने ही उनकी शादी करवाई है और मैया उनकी शादी  में आयेगी व निर्विध्न शादी सम्पन्न करवाएगी व सुखी वैवाहिक जीवन जीनें का आर्शीवाद देगी। ऐसे ही जो लोग मैया के दरबार में आकर अपने रोजगार की मन्नत मांगतें हैं और जब उनको रोजगार मिल जाता है तो वो अपनी तनख्वा का कुछ हिस्सा दान स्वरुप मैया के मन्दिर स्थित दान पात्रों में डालकर जाते है। जो भक्त किसी वस्तु के उत्पादन की फैक्ट्री लगातें है ओर वो उस वस्तु के ज्यादा उत्पादन की मन्नत मांगते हैं। मन्दिर में भक्तों द्वारा वस्तु के शुरु के उत्पादन से प्राप्त वस्तु को मन्दिर भण्डार में चढाते हुए देखा जा सकता है। उसी प्रकार अगर किसी नें अपने रोजगार के लिए या निजी उपयोग के लिए कोई भी वाहन खरीदा हो तो वह सर्वप्रथम मैया जी के दरबार में वाहन को लाकर उस के रोली मोली चढवाते है व वाहन की चाबी को मैया जी के चरणों में रखकर वाहन की धोक लगवाते हैं, फिर रोजगार की शुरुवात करते है, जिससे मान्यता है कि उस व्यक्ति का रोजगार अच्छा चलता है। उसे कोई हानी नहीं होती है। इसीलिए कोई भी नया कार्य शुरु करते ही लोग देई मैया का आर्शीवाद सर्वप्रथम लेते हैं।

3.     गठजोङे की ढोक:-

                   श्री देई माई मन्दिर पर कतारों में लगे श्रधालुओं में नये विवाहित जोङे एक दुसरे से कपङे से बंधे हुए दिखाई देते हैं। इसे आम भाषा में गठजोङे की जात कहा जाता है। शादी होते ही नई जिन्दगी की शुरुवात करने से पहले विवाहित जोड़े सबसे पहले देई मैया का आर्शीवाद लेते हैं और मन्नत मांगते हैं कि उनका विवाहिक जीवन खुशीयों से भरा हुआ हो तथा मैया उन्हें पुर्ण रुप से विकसित औलाद दे। यहां मान्यता है कि श्री देई माई प्रकृति का ही एक रुप है और प्रकृति मां ही हर जीव को पैदा करती है। हर जीव के गर्भ धारण के बाद श्री देई माई ही गर्भ में जीवों का विकास करती है। इसीलिए गर्भ धारण के बाद भी मैयां जी के धोक लगाई जाती है। क्योंकि गर्भधारण जाति धर्म के आधार पर नहीं होता, यह हर जीव का एक स्वभाविक कार्य है इसीलिए श्री देई माई के धोक हर जाति धर्म के लोग लगाते हैं। जिन दम्पतियों के संतान नहीं होती है उन्हें फिर से गठजोङे की जात लगाते हुए व सन्तान प्राप्ती के लिए मन्नत मांगते हुए यहां देखा जा सकता है। 

4.     गोद भरने के लिए:-

                    श्री देई माई जी की यह मान्यता है कि जिन दम्पतियों के सही समय आने पर भी औलाद सुख नहीं मिलता है उन्होनें जाने अन्जानें में प्रकृति मैया के विरुध कोई कार्य किया है या शादी के बाद आशीर्वाद रुपी जात ठीक से नहीं लगाई इसलिए मैया के दरबार में माफी मांगनें पर ही गोद भर सकती है। इसके लिए बेओलाद स्त्री को मैया के दरबार में शुरू में अपनी पति के संग शुक्ल पक्ष की शुरुवात में मंदिर आना होता है। तब लिखकर या इशारे से पेट पर हाथ लगाकर यह जताया जाता है कि मुझे मां बनने का आर्शीवाद चाहीए। तब महन्त जी द्वारा मोली बांधी जाती है व मन्दिर से एक नारीयल उठाकर ईन्छुक स्त्री की गोद में रखा जाता है। ओरत उसे गोद में ढककर अपनें घर ले जाकर उस स्थान पर रखती है जंहा घर के लोग रोज पूजा पाठ करते हैं, मतलब उस नारीयल के किसी तरह से कोई गंन्दी वस्तु (मांस मदिरा आदि) ना छू पाये। सवा माह बाद औरत उस नारीयल को मन्दिर पर ढक कर फिर से लाती है व पुजारी जी के बताये अनुसार उसे मन्दिर में चढा देती है फिर से मोली वगैरह बंधवाकर मन्दिर मुख्य द्वार से पहले लगी रेलिंगों पर अपनें हाथ से एक मनोकामना पुर्ण मोली बांधती है ओर फिर नया नारीयल पूजारी से गोद में रखवाकर उसे ढककर घर ले जाती है। माना व देखा जाता है कि ऐसा सात बार सही तरीके से करने पर बेओलाद श्रधालुओं की गोद भी माता रानी नें भरी है।

5.     जङुला उतरवाने के लिए:-

                         जङुला उतरवानें की रस्म मुख्य रुप से बाल कटवाने की परम्परा को शुरू करने से है अर्थात माता पिता अपने बच्चे के बालों की कटींग करवाना चाहतें है जो वो अब से सारी उम्र करवाते रहेंगे, अतः इस रस्म की शुरुवात भी श्रधालु अन्य रस्मों की तरह माता रानी के दरबार से ही करते हैं। और इच्छानुसार निर्धारित नेग देकर टोकन लेकर जड़ूला स्थल पर जाकर जङुला उतरवातें है। कई बार ऐसा भी देखा गया है कि जिन श्रधालुओं के काफी दिनों बाद भी औलाद नहीं हुई है या औलाद है पर किसी बिमारी से ग्रसित है तो श्रधालु माता के दरबार में मन्नत मांगते है कि मेरे औलाद होते ही सर्वप्रथम माता रानी के दरबार में जङुला उतरवाउंगा या मेरी औलाद जिस रेाग से ग्रसित है वो ठीक हो जाये मैं माता रानी के दरबार में जङुला उतरवाउंगा। इनके अलावा और भी कई कारणों के चलते श्रधालु मैया का जङुला उतरवाते हैं।

 

6.     पालतु पशु पक्षीयों के लिए:-  जैसा की सर्वविदित है कि प्रकृति मां सभी जीवों की मां है और इसी के द्वारा गर्भ में जीवों का निर्माण व विकास होता है। किसी भी जीव के किसी भी अंग में किसी प्रकार की दिक्कत हो तो उसे देई माई (प्रकृति मां) ही ठीक कर सकती है। इसी कारण से प्रायः लोग अपने पशु (गाय, भैंस, बकरी व घोङे आदि) या प़क्षी (मुर्गे वगैरह) को किसी भी प्रकार की कोई बिमारी या कोई परेशानी हो तो सर्वप्रथम मैया रानी के दरबार में उनकी बेल, जंजीर या अन्य कोई वस्तु जिसका प्रयोग उसे बांधने में होता हो, को लाकर उनकी धोलगवाई जाती है। कई बार पशु पक्षियों के बङे व्यापारी (फार्म वाले) उनके द्वारा पाले जा रहे पशु पक्षियों में कोई बिमारी आ जाने या व्यापार में मुनाफे हेतु पशु या पक्षी को ही मैया रानी के दरबार में चढा दिया जाता है। मैया के भक्त अपने पशु के नया बच्चा देनें पर उस पशु का दूध, दही या घी सबसे पहले मैया के दरबार में चढाते है, जब तक नही चढ़ा पाते हैं तब तक घर से बाहर के किसी व्यक्ति को नही खिलाते हैं, जिससे उस पशु के बच्चे व उसके दूध दही में कोई दिक्कत नहीं होती है। इसे आम भाषा में उस पशु का भोग भरना (दीवा भरना) भी कहते हैं। किसी का कोई पशु समय पर प्रजनन नहीं करता तो उसकी बेल की ढोक लगवाई जाती है। कई बार भक्त अपने बच्चों को बिमारीयों से बचाने के लिए बच्चे के नाम से भी पशु व पक्षी मन्दिर में चढाते हैं व कई बार महीलाओं के स्तनों में भी दुध की कमी होनें, बच्चें द्वारा दुध नहीं पिनें या बार बार पिया हुआ दुध वापिस डालनें पर श्रधालु इसे मैया के दोष के रुप में मानते है, इसीलिए काफी संख्या में छोटे कलश (करी) महीलाओं द्वारा अपनें दुध से भरकर चढातें हुए देखा जा सकता है तथा कई बार सीधे स्तनों से ही दूध के छांटे मैया के लगाते हुए देखे जाते हैं।

7.     खेती बाङी की सुरक्षा हेतु:-

                           श्री देई माता, सृष्टि मैया होने के कारण माता के भक्तों का यह मानना है कि हमारे खेतों में जो फसल या सब्जी वगैरह हेाती है उसमें कोई बिमारी ना आये और फसल की पैदावार अच्छी हो इसके लिए भक्त होने वाली फसल का थोङा अंश मैया के दरबार में चढाते हैं। इसी वजह से साल में दो बार फसल कटते समय मन्दिर में श्रधालुओं की संख्या काफी बढ जाती है व अनाज की मात्रा भी। इसी तरह बङे व्यापारी जिस वस्तु का व्यापार करते है उसको कुछ मात्रा में माता रानी को अर्पण करते है ताकि उनका उस वस्तु का व्यापार ज्यादा बढोतरी करे। यह सब माता रानी के भण्डार ग्रह में देखा जा सकता है।