श्री देई माई जी के लिए विशेष प्रतिबंधित सामग्री

मैया जी के लिए विशेष प्रतिबंधित सामग्री मांस व मदिरा मांने जाते हैं। मैया जी द्वारा श्री भैरव नाथ द्वारा भण्डारे में मांस व मदिरा की मांग करने पर ही उसका संहार किया था। इसीलिए जिन लोगों के घरों मे मांस व मदिरा का प्रवेश रहता है उन पर कभी मैया रानी की कृपा नहीं होती है। जो ईन्सान शराब या मांस का सेवन करके माता के मन्दिर में प्रवेश करतें हैं उन पर माता का दोष होता है। इसीलिए इस मन्दिर में लोग चमङे से बनीं चिजें लेकर नहीं जातें है। रक्त लगी कोई भी चीज मन्दिर में नहीं चढाई जाती है। श्री गूंगी  माई मन्दिर साथ में होनें की वजह से श्रधालु यहां बोलतें नहीं हैं, अपनें बच्चों की जुबान सही तरीके से आए  इसके लिए बोलनें वाला नारीयल खरीदकर चढातें है। माना जाता है कि बिना बजनें वाला नारीयल चढानें से गूंगी माता का अपमान होता है जिससे बच्चों को भी बोली नहीं आती है। 

श्री देई माई (गुंगी माई) के चढाये जानें वाला विशेष चढावा:-

         किसी भी मन्दिर में चढावा चढानें के लिए आजकल दान पात्र स्थित होतें हैं। चढावा नगद या आभुषण दान पात्रों में डाल दिया जाता है। श्री देई माई मन्दिर कुठानियां धाम में भी दान पात्र लगे हुए हैं, और नगद राशि दान पात्रों में ही डाली जाये इसके लिए जगह जगह लिख भी रखा है, श्रधालु भी नगद राशि दान पात्रों में ही डालते हैं। इसके अलावा श्री देई माई मन्दिर में जो चढावा चढाया जाता है वो बहुत सारी चीजें होती हैं, जो प्रथा बहुत ही पुरानें समय से चली आ रही है। इसका पहला मुख्य कारण है कि पहले मुद्रा का प्रचलन नहीं था। श्रधालुओं खानें की वस्तुए जैसे अनाज, घी, गुङ, शक्कर, चीनी व तेल आदि चढाते थे, जो आज भी चढाते हैं व दुसरा यह कि हर नवजात शिशु को श्रधालु मैया की देन मानतें है, जिसके पैदा होते ही नवजात शिशु की नोसेरी भरते है, जो आज भी किया जाता है। कई भक्त नो सेरी को सीधा मन्दिर मे चढा देतें हैं व कई जिनके घर में बहुत से सदस्य खानें वाले होते हैं वो नो सेर सामान घर में ही पकातें है व मैया जी को भोग लगाते हैं व सभी उसें प्रसाद मानकर खुद भी खा लेतें है और पड़ोसियों को तथा कुछ भक्त बेसहारा लोगों को भी खिलाते हैं। नोसेरी में भक्त चावल बनाते हैं, चावल के साथ कुछ घी, कुछ मिठा व कुछ दालें, ऐसा करके नो सेर मतलब 9 किलों के लगभग सामान होता है। जो मैया को पूजतें हैं उन सब श्रधालुओं के घर नवजात शिशु पैदा होते ही नो सेरी भरी जाती है। ऐसा बहुत पुराने जमाने से होता आ रहा है। कुछ श्रधालुओं जिनके परीवार छोटें होते है या अन्य कोई कारण होता है वो दो सेरी या पांच सेरी भी करते व चढाते हैं, वहीं कुछ भक्त सवामणी भी करते व चढाते देखे जाते हैं। कई भक्त उपरोक्त सामान की जगह उसकी नगद राशि भी चढा देतें है। हर भक्त अपने अपनें विवेक से चढाता हेै।

        बहुत से भक्त मैया के लिए चुनरी या पोशाक लेकर आतें है और अपनी लाई हुई पोशाक मैया को पहनवाते है तो कई औरते मैया के चढ़ाई हुई चुनरी खरीद कर ले जाती है जो सुहागिनों के लिए शुभ माना जाता है, बहुत से भक्त मैया को भोग लगानें के लिए मिठाई लेकर आते हैं। कई भक्त मैया की अखण्ड जोत के लिए घी लेकर आते है तो कई भक्त मन्दिर के लिए अगर बत्ती ही लेकर आते है। मान्यता अनुसार मैया के चूनङी लाल व पिली तथा कपङा या अन्य चढावा सफेद या हरा ही अच्छा माना जाता है। मैया के भक्तों को अलग अलग चढावा लिए हुए कतारों में खङा देखा जा सकता है। इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि मैया का हर भक्त अपनी मन्नतों व मान्यताओं के अनुसार ही चढावा चढाता है।